पारख के अंग की वाणी नं. 568,619 का सरलार्थ :- विश्व के सब प्राणी परमात्मा कबीर जी की आत्मा हैं। जिनको मानव (स्त्री -पुरूष) का जन्म मिला हुआ है, वे भक्ति के अधिकारी हैं।
काल ब्रह्म यानि ज्योति निरंजन ने सब मानव को काल जाल में रहने वाले कर्मों पर दृढ़ कर रखा है। गलत व अधूरा अध्यात्म ज्ञान अपने दूतों (काल ज्ञान संदेशवाहकों) द्वारा जनता में प्रचार करवा रखा है। पाप कर्म बढ़ें, धर्म के नाम पर ऐसे कर्म प्रारंभ करवा रखे हैं। जैसे हिन्दू श्रद्धालु भैरव, भूत, माता आदि की पूजा के नाम पर बकरे-मुर्गे, झोटे (भैंसे) आदि-आदि की बलि देते हैं जो पाप के अतिरिक्त कुछ नहीं है। इसी प्रकार मुसलमान अल्लाह के नाम पर बकरे, गाय, मुर्गे आदि-आदि की कुर्बानी देते हैं जो कोरा पाप है। हिन्दू तथा मुसलमान, सिख तथा इसाई व अन्य धर्म व पंथों के व्यक्ति कबीर परमात्मा (सत पुरूष) के बच्चे हैं जो काल द्वारा भ्रमित होकर पाप इकट्ठे कर रहे हैं। इन वाणियों में कबीर जी ने विशेषकर अपने मुसलमान बच्चों को काल का जाल समझाया है तथा यह पाप न करने की राय दी है। परंतु काल ब्रह्म द्वारा झूठे ज्ञान में रंगे होने के कारण मुसलमान अपने खालिक कबीर जी के शत्रा बन गए।
काल ब्रह्म प्रेरित करके झगड़ा करवाता है। कबीर परमात्मा मुसलमान धर्म के मुख्य कार्यकर्ता काजियों तथा मुल्लाओं को पाप से बचाने के लिए समझाया करते थे। कहा करते थे कि काजी व मुल्ला! आप गाय को मारकर पाप के भागी बन रहे हो। आप बकरा, मुर्गा मारते हो, यह भी महापाप है। गाय के मारने से (अल्लाह) परमात्मा खुश नहीं होता, उल्टा नाराज होता है। आपने किसके आदेश से गाय को मारा है?
पारख के अंग की वाणी नं. 569.572 :-
सुन काजी राजी नहीं, आपै अलह खुदाय। गरीबदास किस हुकम सैं, पकरि पछारी गाय।।569।।
गऊ हमारी मात है, पीवत जिसका दूध। गरीबदास काजी कुटिल, कतल किया औजूद।।570।।
गऊ आपनी अमां है, ता पर छुरी न बाहि। गरीबदास घृत दूध कूं, सबही आत्म खांहि।।571।।
ऐसा खाना खाईये, माता कै नहीं पीर। गरीबदास दरगह सरैं, गल में पडै़ जंजीर।।572।।
सरलार्थ :- परमेश्वर कबीर जी ने काजियों व मुल्लाओं से कहा कि गऊ हमारी माता है जिसका सब दूध पीते हैं। हे (कुटिल) दुष्ट काजी! तूने गाय को काट डाला।
गाय आपकी तथा अन्य सबकी (अमां) माता है क्योंकि जिसका दूध पीया, वह माता के समान आदरणीय है। इसको मत मार। इसके घी तथा दूध को सब धर्मों के व्यक्ति खाते-पीते हैं।
ऐसे खाना खाइए जिससे माता को (गाय को) दर्द न हो। ऐसा पाप करने वाले को परमात्मा के (दरगह) दरबार में जंजीरों से बाँधकर यातनाएँ दी जाएँगी।
परमात्मा कबीर जी के हितकारी वचन सुनकर काजी तथा मुल्ला कहते हैं कि हाय! हाय! कैसा अपराधी है? माँस खाने वालों को पापी बताता है। सिर पीटकर यानि नाराज होकर चले गए। फिर वाद-विवाद करने के लिए आए तो परमात्मा कबीर जी ने कहा कि हे काजी तथा मुल्ला! सुनो, आप मुर्गे को मारते हो तो पाप है। आगे किसी जन्म में मुर्गा तो काजी बनेगा, काजी मुर्गा बनेगा, तब वह मुर्गे वाली आत्मा मारेगी। स्वर्ग नहीं मिलेगा, नरक में जाओगे।
काजी कलमा पढ़त है यानि पशु-पक्षी को मारता है। फिर पवित्रा पुस्तक कुरान को पढ़ता है। संत गरीबदास जी बता रहे हैं कि कबीर परमात्मा ने कहा कि इस (जुल्म) अपराध से दोनों जिहांन बूडे़ंगे यानि पृथ्वी लोक पर भी कर्म का कष्ट आएगा। ऊपर नरक में डाले जाओगे।(576)
कबीर परमात्मा ने कहा कि दोनों (हिन्दू तथा मुसलमान) धर्म, दया भाव रखो। मेरा वचन मानो कि सूअर तथा गाय में एक ही बोलनहार है यानि एक ही जीव है। न गाय खाओ, न सूअर खाओ।
आज कोई पंडित के घर जन्मा है तो अगले जन्म में मुल्ला के घर जन्म ले सकता है। इसलिए आपस में प्रेम से रहो। हिन्दू झटके से जीव हिंसा करते हैं। मुसलमान धीरे-धीरे जीव मारते हैं। उसे हलाल किया कहते हैं। यह पाप है। दोनों का बुरा हाल होगा। बकरी, मुर्गी (कुकड़ी), गाय, गधा, सूअर को खाते हैं। भक्ति की (रीस) नकल भी करते हैं। ऐसे पाप करने वालों से परमात्मा (अल्लाह) दूर है यानि कभी परमात्मा नहीं मिलेगा। नरक के भागी हो जाओगे। पाप ना करो।
घोडे़, ऊँट, तीतर, खरगोश तक खा जाते हैं और भक्ति बंदगी भी करते हैं। ऐसे (कुकर्मी) पापी से (अल्लाह) परमात्मा सौ कोस (एक कोस तीन किलोमीटर का होता है) दूर है।
(भिस्त-भिस्त) स्वर्ग-स्वर्ग क्या कह रहे हो? (दोजख) नरक की आग में जलोगे।
माँस खाते हो, जीव हिंसा करते हो, फिर भक्ति भी करते हो। यह गलत कर रहे हो। परमात्मा के दरबार में गले में फंद पड़ेगा यानि दण्डित किए जाओगे।(586.595)
अच्छा शाकाहार करो। बासमती चावल पकाओ। उसमें घी तथा खांड (मीठा) डालकर खाओ और भक्ति करो। (कूड़े काम) बुरे (पाप) कर्म त्याग दो। (फुलके) पतली-पतली छोटी-छोटी रोटियों को फुल्के कहते हैं। ऐसे फुल्के बनाओ। धोई हुई दाल पकाओ। हलवा, रोटी आदि-आदि अच्छा निर्दोष भोजन खाओ। हे काजी! सुनो, माँस ना खाओ। परमात्मा की साधना करने के उद्देश्य से (रोजे) व्रत रखते हो, (तसबी) माला से जाप भी करते हो। फिर खून करते हो यानि गाय, मुर्गी-मुर्गा, बकरा-बकरी मारते हो। यह परमात्मा के साथ धोखा कर रहे हो। परमात्मा कबीर जी ने सद् उपदेश दिया। परंतु काजी तथा मुल्लाओं ने उसका दुःख माना। {कहते हैं कि कहैं भली माने बुरी, यही परिक्षा नीच। जितना धोवे कच्ची भींत को उतनी मांचे कीच। अर्थात् दुष्ट इंसान को अच्छी शिक्षा देने से भी वह उसे बुरी मानता है। जैसे कच्ची ईंटों से बनी दिवार को जितना धोया जाए, उसमें कीचड़ ही बनता जाता है।}(596.598)
उस दिन दिल्ली का सम्राट सिकंदर लोधी (बहलोल लोधी का पुत्र) काशी नगर में आया हुआ था। पाँच-दस हजार मुसलमान मिलकर सिकंदर लोधी के पास विश्रामगृह में गए। काजियों ने कहा कि हे जहांपनाह (जगत के आश्रय)! हमारे धर्म की तो बेइज्जती कर दी। हम तो कहीं के नहीं छोड़े। एक कबीर नाम का जुलाहा काफिर हमारे धर्म के धार्मिक कर्मों को नीच कर्म बताता है। अपने को (अलख अल्लाह) सातवें आसमान वाला अदृश्य परमात्मा कहता है।
परमात्मा कबीर जी के साथ खैंचातान (परेशानी) शुरू हुई।
सिकंदर राजा के आदेश से दस सिपाही परमात्मा कबीर जी को बाँधकर हथकड़ी लगाकर लाए। काजी-मुल्ला की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। गर्व से पगड़ी ऊँची कर ली। बोले कि हे राजन! यह जुलाहा पूर्ण रूप से काफिर (दुष्ट) है। यह माँस भी नहीं खाता। इसके हृदय में दया नाम की कोई वस्तु नहीं है। इसकी माता को तथा इसके पिता को भी पकड़कर लाया जाए।(604)
मोमिन (मुसलमान) नीरू को भी पकड़ लिया। माता नीमा को भी पकड़ लिया। उन दोनों को भी वहीं राजा के पास ले आए। एक गाय को काट दिया।(605)
राजा सिकंदर बोला कि हे काफिर! तू अपने को (अल्लाह) परमात्मा कहता है। यदि परमात्मा है तो इस दो टुकड़े हुई गाय को जीवित कर दे। हमारे नबी मुहम्मद ने मृत गाय को जीवित किया था। जीवित कर, नहीं तो तेरे टुकड़े कर दिए जाएँगे। अब चुपचाप क्यों बैठा है? दिखा अपनी शक्ति।(606)
पारख के अंग की वाणी नं. 607,610 :-
हमहीं अलख अल्लाह हैं, कुतब गोस अरू पीर। गरीबदास खालिक धनी, हमरा नाम कबीर।।607।।
मैं कबीर सरबंग हूँ, सकल हमारी जाति। गरीबदास पिंड प्राण में, जुगन जुगन संग साथ।।608।।
गऊ पकरि बिसमिल करी, दरगह खंड अजूद। गरीबदास उस गऊ का, पीवै जुलहा दूध।।609।।
चुटकी तारी थाप दे, गऊ जिवाई बेगि। गरीबदास दूझन लगी, दूध भरी है देग।।610।।
सरलार्थ :- कबीर परमात्मा बोले कि मैं अदृश परमात्मा हूँ। मैं ही संत तथा सतगुरू हूँ। मेरा नाम कबीर (अल्लाह अकबर) है। मैं (खालिक) संसार का मालिक (धनी) हूँ। मैं कबीर सर्वव्यापक हूँ।
जो गाय मार रखी थी, उसके गर्भ का बच्चा व गाय के दो-दो टुकड़े हुए पड़े थे।
परमात्मा कबीर जी ने हाथ से थपकी मारकर दोनों माँ-बच्चे को जीवित कर दिया। दूध की बाल्टी भर दी। कबीर जी ने वह दूध पीया तथा कहा :-
पढ़ें राग बिलावल का शब्द नं. 12 :-
दरदबंद दरबेश है,बे दरद कसाई। संत समागम किजिये तज लोक बड़ाई।।टेक।। डिंभी डिंभ
न छाड़हीं, मरहट के भूता। घर घर द्वारै फिरत हैं, कलियुग के कूता।।1।। डिंभ करैं डूंगर चढैं, तप
होम अंगीठी। पंच अग्नि पाखंड है, याह मुक्ति बसीठी।।2।। पाती तोरे क्या हुवा, बहु पान झरोरे।
तुलसी बकरा खा गया, ठाकुर क्या बौरे।।3।। पीतल ही का थाल है, पीतल का लोटा। जड़ मूरत
कूं पूजते, आवैगा टोटा।।4।। पीतल चमचा पूजिये, जो खान परोसै। जड़ मूरत किस काम की, मत
रहा भरोसै।।5। काशी गया प्रयाग रे, हरि पैडी न्हाये। द्वारामती दर्शन किये, बौह दाग दगाये।।6।।इन्द्र
दौंन अस्नान रे, कर पुष्कर परसे। द्वादस तिलक बनाय कर, बहु चंदन चरचे।।7।। अठसठ तीरथ सब किये, बिंद्राबन फेरी। नाम बिना खुल्हे नहीं, दिव्य दृष्टि अंधेरी।।8।। सतगुरु भेद लखाइया, निज नूर निशानी। कहता दास गरीब है, छूटै सो प्रानी।।9।।12।।
सिकंदर राजा को यह प्रथम (परिचय) चमत्कार दिखाया था यानि अपनी शक्ति का परिचय दिया था। काजी तथा मुल्ला उदास हो गए। उनकी नानी-सी मर गई। हजारों दर्शक शहर निवासी यह खड़े देख रहे थे। माता तथा पिता को धन्य-धन्य कहने लगे कि धन्य है तुम्हारा पुत्र कबीर।
पारख के अंग की वाणी नं. 613,619 का सरलार्थ :-
कबीर परमात्मा जुलाहे का कार्य करता था। परंतु उस दिन जनता को पता चला कि यह बहुत सिद्धि वाला है। परमात्मा कबीर जी विशेष मुद्रा बनाए खड़े थे। उनका चेहरा सिंह (शेर) की तरह दिखाई दे रहा था। यह देखकर राजा सिकंदर बहुत आधीन हो गया। कबीर परमात्मा के चरणों में गिर गया। कबीर परमात्मा बोले कि लाओ कहाँ है गाय का माँस? परमात्मा कबीर खम्बे की तरह अडिग खड़े रहे। सिकंदर बादशाह चरणों में लेट गया।
कबीर परमात्मा जी ने कहा कि हे राजन! अगर-मगर त्यागकर सीधे मार्ग चलो।
अपना कल्याण करवाओ। पाप न करो। जब राजा सिकंदर ने परमात्मा कबीर जी के चरणों में लेटकर प्रणाम किया तो काजी-मुल्ला भाग गए। अहंकार में सड़ रहे थे। परमात्मा सामने था। उससे द्वेष कर रहे थे। राजा सिकंदर ने परमात्मा कबीर जी तथा उसके मुँहबोले माता-पिता (नीरू-नीमा) को पालकियों में बैठाकर सम्मान के साथ उनके घर भेजा। काजी-मुल्ला (एँठ) अकड़कर यानि नाराज होकर चले गए। फिर मौके की तलाश करने लगे कि किसी तरह सिकंदर राजा के समक्ष कबीर को नीचा दिखाया जाए।
पारख के अंग की वाणी नं. 620,635 का सरलार्थ :- इस घटना से अपनी अधिक बेइज्जती मानकर काजी-पंडित राजा से रूष्ट होकर शहर त्यागने की धमकी देकर चलने लगे और कहा कि यह जंत्र-मंत्र जानता है। अगले दिन जब राजा सिकंदर के गुरू शेखतकी को पता चला तो अपनी करामात दिखाने के लिए कबीर जी को आते देखकर शेखतकी ने जंत्र-मंत्र करके मूठ छोड़ी। (मूठ एक आध्यात्मिक शक्ति होती है जो तांत्रिक लोग प्रयोग करते हैं जो जान तक ले लेती है।) उस मूठ (जंत्र-मंत्र) ने कबीर जी पर तो कार्य किया नहीं क्योंकि वे तो परमात्मा हैं, सामने एक कुत्ते पर लगी। वह कुत्ता मर गया।
परमेश्वर कबीर जी ने उस कुत्ते का कान पकड़ा और कहा कि चल उठ। कुत्ता उठकर दौड़ गया और उस मूठ से कहा कि तू जिसने छोड़ी थी, उसके पास जा। परमेश्वर कबीर जी के कहते ही वह शक्ति उल्टी शेखतकी को लगी। शेखतकी की मृत्यु हो गई। काजियों ने जाकर राजा सिकंदर लोधी को बताया कि आपके पीर शेखतकी को कबीर जी ने मार दिया है। उसका अंतिम संस्कार कराओ। यह बात सुनकर सिकंदर क्रोधित होकर बोला, ‘‘लाओ कबीर को पकड़कर।‘‘ कबीर जी को लाया गया। आँखें लाल करके सिकंदर लोधी ने राजा ने कहा कि तूने शेखतकी को मारा है। उपस्थित काजी व मुसलमान जनता ने कहा कि कबीर जुलाहे की तलवार से गर्दन काट दो। परमेश्वर कबीर जी उठकर चल पड़े तो काजी तथा मुल्ला ने परमेश्वर की बांह (बाजुओं) को पकड़ लिया। परमेश्वर कबीर जी ने काजी को पाँच गर्दनी (सिर से टक्कर) मारी। पाँच टक्कर लगने से काजी गिर गया तथा उसकी गुदा बाहर को निकल गई। (काँच्य निकल गयी) मुल्ला ने कबीर जी को तुक्का (लात से ठोकर = पैर से ठोकर) मारा तो वह स्वयं ही दो बीक (कदम = दस फुट) दूर जा गिरा। सिकंदर राजा को परमेश्वर कबीर जी के मस्तिक में दोनों सेलियों के बीच (भृकुटी) में सूर्य तथा चन्द्रमा चमकते दिखाई दिए। राजा ने उठकर परमात्मा कबीर जी के कदम छूए तथा कहा कि आप परमात्मा का स्वरूप (अल्लाह की जात) हो। कबीर जी ने मृत शेखतकी के चुतड़ों पर तुक्का (लात) मारा। उसी समय शेखतकी पीर जीवित हो गया। परमेश्वर कबीर जी ने उपस्थित मुसलमान तथा हिन्दू जनता को पुनः सत्य उपदेश दिया। बहुतों ने कबीर जी से दीक्षा ली, परंतु जो गुरू पद पर थे तथा जो अपनी रोजी-रोटी (निर्वाह) जनता को भ्रमित करके चला रहे थे, वे नहीं माने। कबीर जी की मुँह बोली माता श्रीमति नीमा ने कहा, हे बेटा कबीर! तूने गाय तो जीवित कर दी थी, परंतु दूध निकालने की क्या आवश्यकता थी। उसी समय उठकर क्यों नहीं चल पड़ा? माता समझा रही थी कि ऐसे राक्षस स्वभाव के व्यक्ति के पास अधिक समय नहीं लगाना चाहिए।
पारख के अंग की वाणी नं. 636,648 का सरलार्थ :- परमेश्वर कबीर जी का उद्देश्य था कि हिन्दू तथा मुसलमान सब मेरे बच्चे हैं। इनको काल ब्रह्म (ज्योति निरंजन) भ्रमित कर रहा है। मेरी ही आत्माओं को मेरे से भिड़ा रहा है। मेरा उद्देश्य इनको पाप से बचाना है। इसलिए बार-बार यही कहा है कि हे काजी! गलत साधना त्याग दो। रोजा ना रखो।
परमात्मा की सच्ची साधना करो। मानव जन्म का समय हाथ से छूट जाएगा। फिर नरक में डाला जाएगा। हे काजी! आपने परमात्मा की (रूह) आत्मा (गाय या अन्य जीव) मार दी। वह आपसे (राजी) प्रसन्न कैसे होगा? परमात्मा के दरबार में लेखा होगा। वहाँ आपका पाप सामने आएगा। पाप ना कर। परमात्मा के दरबार में जब पाप करने वाले का हिसाब होगा, उस समय चाहे करोड़, अरब-खरब अर्ज क्षमा करने के लिए करना, क्षमा नहीं होगे। काजी तथा मुल्ला व जो अन्य पाप करते हैं, जीव हिंसा करते हैं, नरक में डाले जाएँगे। सब (खोट) कसूर सामने रखे जाएँगे। काजी, मुल्ला तथा पंडित जो दोनों धर्मों के प्रचारक हैं, ये तीनों महादोषी ठहराए जाएँगे। काजी-मुल्ला ने गर्भ वाली गाय मार दी। उसमें गर्भ मरा, वह गाय मरी। गाय बच्चा उत्पन्न करती है, उसे ब्यांत कहते हैं। एक ब्यांत में आठ-नौ महीने दूध देती है। एक बच्चा देती है। घी-दूध खाते। माँस खाकर पाप के भागी बन गए। कुछ तो विचार करो। पवित्र पुस्तक कुरान को पढ़ते हो। पाप साथ-साथ करते हो। यह भक्ति नहीं है। धोखा हो रहा है। (बहीसत) स्वर्ग-स्वर्ग क्या करते हो? नरक में जाओगे। स्वर्ग में खूनी को जगह नहीं है। ब्राह्मण तो हिन्दुओं का (देव) देवता है, मुल्ला मुसलमानों का (पीर) मार्गदर्शक है। परमात्मा के दरबार में दोनों का दोष साबित होगा। ब्राह्मण शास्त्रविधि त्यागकर मनमाना आचरण करते व करवाते हैं जो गीता अध्याय 16 श्लोक 23 में मना किया है। इसलिए दोषी हैं। देवी को बलि के लिए बकरा, झोटा काटकर चढ़ाते हैं। इसलिए भी ब्राह्मण यानि गुरू दोषी है। एक काजी ने तथा एक पंडित (गुरू) ने दोनों धर्मों को डुबो दिया। हिन्दू सूअर का माँस खाते हैं, मुसलमान गाय का। दोनों से राम कहो चाहे रहीम, बहुत दूर है यानि परमात्मा तो ऐसे व्यक्तियों से सौ कोस (तीन सौ किलोमीटर) दूर है।
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